Monika garg

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लेखिनी 15 पार्ट सीरीज प्रतियोगिता # सती बहू(भाग:-15)

गतांक से आगे :-


श्याम ने सारे घर का सामान बांध लिया और बैठक में रखी अपनी चंदा की तस्वीर को जैसे ही उठाने के लिए गया वह कुछ क्षण के लिए ठहर गया और चंदा की तस्वीर की आंखों में आंखें डालकर वह नम आंखों से बोला,"चंदू आज तुम्हारी अमानत तुम्हारे ही गांव ले जा रहा हूं बहुत दिन का बनवास सहन कर लिया तुमने और मैंने।चलों अपने घर चलेंगे।"

यह कहकर श्याम ने तस्वीर को अपने संदूक में रख लिया ।उसी संदूक में जिस में चंदा का अस्थि कलश रखा था ।आज वह अपनी प्रेयसी को उसका उचित माना सम्मान दिलाने ले जा रहा था।

गांव में वैसे भी चंदा को एक सती देवी की तरह पूजा जाता था लेकिन अब सही मायने में चंदा की देवी की तरह पूजा होगी ।

श्याम भी आर्थिक तौर पर बहुत मजबूत हो गया था । बड़े बड़े सरकारी ठेके लेने लगा था ।पैसे की कोई कमी नहीं थी शहर में पर उसे तो गांव जाकर चंदा का मान सम्मान वापस लाना था।

उसने गांव में जो हवेली की देखभाल करता था उससे सारा समान व्यवस्थित करवा लिया था ।बस कुछ कपड़े और अपनी चंदा की अस्थियों को लेकर श्याम गांव की ओर चल दिया ।


गांव पहले से बहुत बदल गया था ।वैसे तो श्याम की शक्ल सूरत में भी बहुत बदलाव आ गया था । दाढ़ी रखने के बाद तो वो कम ही पहचान में आता था।

इधर विशम्बर के रुतबे में भी बदलाव आ गया था कल का छिछोरा,जनाना विशम्बर आज सती बहू चंदा के ठान का मुख्य पुजारी बन गया था ।उसकी मर्जी के खिलाफ एक पत्ता भी नहीं हिलता था गांव में ।सब उसे बड़े महंत जी कहते थे ।


सती बहू के ठान से चढ़ावा ही इतना आ जाता था कि विशम्बर भी अच्छा मालदार हो गया था।बस अब सती ठान का पुजारी हो गया था तो गृहस्थ में नहीं आ सकता था ।उसे तो वैसे भी औरत की जरूरत नहीं थी ।पहले भी जब वह औरतों को छेड़ता था तो इसलिए ताकि लोगों को लगे वो भी मर्द है।वैसे मोती उसकी तृप्ति कर ही देता था।बस विशम्बर के मन में एक ही कसक थी कि पुश्तैनी हवेली किसी और के हाथों में चली गई।

  आज ही उसे पता चला कि हवेली का मालिक जिसने आज से छह साल पहले हवेली खरीदी थी वो स्वयं रहने  के लिए आ रहा है

वह कल से ही देख रहा था हवेली की रौनक , रंगाई पुताई करा कर नया फर्नीचर ,सब कुछ नया आ रहा था हवेली में। श्याम अपनी चंदा को उसी सम्मान के साथ हवेली में लाना चाहता था जिस सम्मान के साथ कभी वह ब्याह कर आई थी।जिस तरह से विशम्बर और उसकी मां ने उसे निकाला था और एक अजीब सा सूनापन था उसकी आंखों में ,तभी श्याम ने कसम खा ली थी चंदा को वहीं सम्मान दिलाऊंगा जो एक बहू का होता है।

विशम्बर ने सोच तो लिया था कि कोई मालदार आसामी आई है गांव में ।वह हवेली के आगे खड़ा सोच ही रहा था कि तभी कार का हार्न बड़ी जोर से बजा वह एक तरफ हो गया । गाड़ी में बैठे श्याम ने उसे पहचान लिया था ।उसने गाड़ी हवेली के मेन गेट के आगे रोकी और कार का दरवाजा खोला।उसमें से निकल कर नन्ही चंदा बाहर आई और जोर से चिल्लाई " पापा …… तो ये है हमारा नया घर ।कितना बड़ा है और वह जोर से उछलने लगी । विशम्बर ने जब नन्ही चंदा को देखा तो एक करंट सा दौड़ गया उसके शरीर में," ये क्या… ये तो बिल्कुल चंदा जैसी….। उसके बोल मुंह में ही रह गये तभी श्याम गाड़ी में से चंदा की तस्वीर और अस्थि कलश लेकर निकला ।चंदा की तस्वीर जब एक अजनबी के हाथों में देखी तो उसका माथा ठनका ।

श्याम अपनी चंदा को बड़े इज्जत से गृहप्रवेश करवा रहा था। श्याम और उसकी नन्ही बेटी अपनी मां की तस्वीर के साथ हवेली के अंदर चले गये ।


अगले दिन तड़के ही श्याम उठ गया था ।नहा धो कर चंदा के अस्थि कलश को साथ ले उसके ठान की ओर चल पड़ा।सुबह की आरती हो रही थी ।पर विशम्बर का मन आज आरती में नहीं लग रहा था ।आज सामने ही वो अजनबी खड़ा था जिस के हाथ में कल उसने चंदा की तस्वीर देखी थी । आरती खत्म होते ही लोग प्रशाद लेकर अपने घरों को चले गये । विशम्बर ने देखा वो अजनबी एक कलश लेकर उसी की ओर बढ़ रहा था ।पहले तो वो घबराया फिर सोचा हो सकता है ये कोई सती बहू का भक्त है चढ़ावा चढ़ाने आया है ।जब श्याम उसके पास पहुंचा तो वह उससे बोला," क्यूं पहचाना विशम्बर?"

विशम्बर एकदम हक्का बक्का रह गया । क्योंकि उसे इस नाम से कोई नहीं पुकारता था उसे बड़े महन्त और मोती को छोटे महन्त के नाम से जानते थे।

"कककऔन  हो तुम…..?"

विशम्बर हकलाकर बोला।

" वहीं हूं जिसकी तुमने जीते जी कब्र बना दी थी खेतों में।"

"शशशश …श्याम तुम"

"हां मैं …और मेरी चंदा हम दोनों गांव वापस आ गये है ।जिस चंदा बहू को तुमने जीते जी जलाने की कोशिश की और उसी के नाम का "सती बहू चंदा" नाम से जो ठान बनाया है उसकी कमाई तुम अपने ऐबों में खर्च करते हो ।अब मैं सारे गांव को तुम्हारी सच्चाई बताऊंगा और इस ठान से आने वाली सारी कमाई समाज की भलाई के कामों में लगाऊंगा , पाठशाला खोली जाएंगी ताकि कोई भी कन्या सती बहू चंदा की तरह अनपढ़ रह कर तुम जैसे जालिमों के ज़ुल्म का शिकार ना हो। तुम्हारे पास बस शाम तक का समय है इस ठान को चुपचाप छोड़कर कहीं दूर चले जाओ वरना आज शाम की आरती में लोग तुम्हारी चप्पल जूतों से आरती उतारेंगे।


बस….. इतना ही बहुत था विशम्बर के लिए शाम की आरती में सब बड़े और छोटे महन्त के ढूंढते ही रह गये । श्याम ने चंदा का अस्थि कलश ठान में दबा दिया ।और सही अर्थों में आज "सती बहू चंदा " का ठान बना था और श्याम उसका प्रेमी आजीवन उसके ठान की चाकरी करता रहा।

(इति)

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4 Comments

HARSHADA GOSAVI

15-Aug-2023 12:57 PM

Nice

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hema mohril

02-Jul-2023 12:42 PM

Very nice

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